जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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3. अगर कोई सदस्य एक हजार से ज्यादा रुपये की पोस्टिग करता है, तो बचे हुए रुपये का बैलन्स forward हो जाएगा और उनके account में जुड़ता चला जाएआ।

4. सदस्यों द्वारा करी गई प्रत्येक पोस्टिंग का मौलिक एवं अर्थपूर्ण होना अपेक्षित है।

5. पेमेंट के पहले प्रत्येक सदस्य की postings की random checking होती है। इस दौरान यदि उनकी postings में copy /paste अथवा अनर्थपूर्ण content की मात्रा अधिक/अनुचित पाई जाती है, तो उन्हें एक रुपये प्रति पोस्ट के हिसाब से पेमेंट किया जाएगा।

6. अगर किसी सदस्य की postings में नियमित रूप से copy /paste अथवा अनर्थपूर्ण content की मात्रा अधिक/अनुचित पाई जाती है, तो उसका account deactivate होने की प्रबल संभावना है।

7. किसी भी विवादित स्थिति में हिन्दी डिस्कशन फोरम संयुक्त परिवार के management द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम एवं सर्वमान्य होगा।

8. यह फोरम एवं इसमे आयोजित सारी प्रतियोगिताएं हिन्दी प्रेमियों द्वारा, हिन्दी प्रेमियों के लिए, सुभावना लिए, प्रेम से किया गया प्रयास मात्र है। यदि इसे इसी भावना से लिया जाए, तो हमारा विश्वास है की कोई विशेष समस्या नहीं आएगी।

यदि फिर भी .. तो कृपया हमसे संपर्क साधें। आपकी समस्या का उचित निवारण करने का यथासंभव प्रयास करने हेतु हम कटिबद्ध है।
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या खुदा ! एक हज R !!! पोस्टर महा लपक के वाले !!!
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जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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हिंदी सिनेमा की मशहूर स्क्रिप्ट राइटर जोड़ी सलीम खान और जावेद अख्तर की जिंदगी पर बेस्ड डॉक्यूमेंट्री 'एंग्री यंग मैन' 20 अगस्त को प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुई। 3 एपिसोड वाली इस सीरीज का डायरेक्शन नम्रता राव ने किया है, जिन्होंने इस सीरीज के साथ बतौर डायरेक्टर डेब्यू भी किया है। इस डॉक्यूमेंट्री में सलीम-जावेद की जिंदगी के कई पहलुओं पर रोशनी डाली गई है। इसी सीरीज में गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर ने बॉम्बे जाने के बाद अपने कठोर संघर्षों के बारे में भी बात करते दिखे। डॉक्यूमेंट्री में बॉलीवुड की सबसे प्रभावशाली लेखक जोड़ी सलीम-जावेद की यात्रा, चुनौतियों और अंततः जीत के बारे में है।

भोपाल छोड़ जब आए मुंबई
जावेद अख्तर ने भोपाल के सैफिया कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। अपने ग्रेजुएशन के बाद जावेद अख्तर फिल्मी दुनिया में अपना करियर बनाने के लिए सपनों के शहर बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए। उन्होंने लेजेंड्री फिल्ममेकर गुरु दत्त और राज कपूर के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया। दोनों दिवंगत फिल्ममेकर्स को याद करते हुए जावेद अख्तर ने कहा- 'वे ऐसे निर्देशक थे जिनकी मैं उस समय बहुत प्रशंसा करता था। मुझे यकीन था कि मैं कुछ ही समय में खुद निर्देशक बन जाऊंगा।'

जिंदा रहने के लिए करना पड़ा संघर्षः जावेद अख्तर
अपने स्ट्रगल को याद करते हुए उन्होंने कहा- 'मैं ठीक पांच दिनों तक अपने पिता के घर में था, और फिर मैं अकेला चला गया।' जावेद अख्तर ने इस दौरान खुलासा किया कि क्योंकि, उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए वह दोस्तों के साथ रहते थे। कभी रेलवे स्टेशन, कभी पार्क तो कभी स्टूडियो कम्पाउंड के बेंच पर सोते थे। जिंदा रहने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। जावेद अख्तर के लिए सबसे कठिन दौर वो था, जब उनके पास पहनने और खाने के लिए कुछ नहीं था।

जावेद अख्तर के पास था एक ही ट्राउजर
जावेद अख्तर कहते हैं- 'मेरी आखिरी पैंट और एकमात्र पैंट इस हद तक फट गई थी कि उसे अब पहना नहीं जा सकता था। और मेरे पास कोई अन्य ट्राउजर नहीं थी।' उन्होंने याद किया कि कैसे उन्होंने 15 साल की उम्र में अपनी आंटी का घर छोड़ दिया था, जिसके बाद उन्होंने कभी भी अपने परिवार से मदद नहीं मांगी, उन्होंने इसे अपने दम पर करने का दृढ़ संकल्प किया था।



शबाना आजमी ने शेयर किया इमोशनल किस्सा
जावेद की पत्नी और दिग्गज अभिनेत्री शबाना आज़मी ने एक और इमोशनल किस्सा शेयर किया और खुलासा किया कि एक समय ऐसा भी था जब जावेद अख्तर ने तीन दिनों तक खाना नहीं खाया था। "भारी बारिश हो रही थी, और पास की इमारत के एक अपार्टमेंट से उन्होंने हल्की रोशनी चमकती देखी। उन्होंने वह रोशनी देखी और खुद से कहा-'मैं इस तरह मरने के लिए पैदा नहीं हुआ हूं। यह समय बीत जाएगा।''

कठिन समय को याद कर रोने लगे जावेद अख्तर
उस कठिन समय को याद करते हुए जावेद फूट-फूट कर रोने लगे और बोले- "अगर आप अपने जीवन में खाने या नींद से वंचित रहे हैं, तो यह आप पर गहरा प्रभाव छोड़ता है जिसे आप यह कभी नहीं भूल सकते। कभी-कभी मुझे बटर, जैम, हाफ फ्राय एग, कॉफी के साथ ट्रॉली पर नाश्ता परोसा जाता तो मैं मन ही मन सोचता हूं 'तेरी औकात थी? क्या मैं इसके लायक हूं?' अब भी, ऐसा लगता है कि यह नाश्ता मेरे लिए नहीं है'।
Source: https://www.indiatv.in/entertainment/bo ... 20-1068852

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Sunilupadhyay250
जीयो मेरे लाल, दोहरा शतक पूर्ण ....!!!
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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फिल्मों में काम करने के लिए, जावेद अख्तर 1964 में मुंबई (तब बंबई) आए थे। शुरूआत में, उन्होंने संघर्ष किया और छोटी-मोटी नौकरियां कीं। लेकिन उनका जीवन बदल गया जब उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई। दोनों ने साथ में पटकथाएं लिखना शुरू किया और फिल्मी दुनिया में एक नया दौर लाया। उनकी जोड़ी "सलीम-जावेद" के नाम से प्रसिद्ध हुई और इन्होंने 'शोले', 'दीवार', 'ज़ंजीर' जैसी सुपरहिट फिल्मों की पटकथा लिखी।

इनकी इस संघर्षमयी यात्रा ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक अहम हिस्सा बना दिया और उनकी कलम से निकले गीत और शायरी ने उन्हें अमर कर दिया।
manish.bryan
यारा एक हजारा , देख मैं आरा!!!
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

Post by manish.bryan »

Sunilupadhyay250 wrote: Tue Aug 20, 2024 5:54 pm फिल्मों में काम करने के लिए, जावेद अख्तर 1964 में मुंबई (तब बंबई) आए थे। शुरूआत में, उन्होंने संघर्ष किया और छोटी-मोटी नौकरियां कीं। लेकिन उनका जीवन बदल गया जब उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई। दोनों ने साथ में पटकथाएं लिखना शुरू किया और फिल्मी दुनिया में एक नया दौर लाया। उनकी जोड़ी "सलीम-जावेद" के नाम से प्रसिद्ध हुई और इन्होंने 'शोले', 'दीवार', 'ज़ंजीर' जैसी सुपरहिट फिल्मों की पटकथा लिखी।

इनकी इस संघर्षमयी यात्रा ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक अहम हिस्सा बना दिया और उनकी कलम से निकले गीत और शायरी ने उन्हें अमर कर दिया।
जावेद अख्तर एक कमल के लेखक हैं और उसमें कोई दो राय नहीं है उनकी लिखी कोई पटकथा हो संगीत हो काव्य हो या लेखन का किसी भी प्रकार का कार्य हो एक अलग पहचान जावेद अख्तर के कलम में दिख जाएगी।

जावेद अख्तर बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे और उनके लेखन में यह बात जग जाहिर होती है 16 जैसी फिल्मों और अनगिनत गानों के रचयिता जावेद अख्तर किसी पहचान के मोहताज नहीं है। जावेद अख्तर की कलम के साथ-साथ उनकी जबान पर भी मां सरस्वती का वास है और उनकी बोली में एक अलग ही दम निखार के आता है जैसे अमिताभ बच्चन की आवाज में एक अलग वजन समझ में आता है।
"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"
Deepika sharma
शतकवीर ..….. संपूर्ण!!!
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

Post by Deepika sharma »

बॉलीवुड के मशहूर गीतकार जावेद अख्तर (Javed Akhtar) 'एंग्री यंग मैन' (Angry Young Men) डॉक्यूमेंट्री सीरीज को लेकर सुर्खियों में हैं। इस डॉक्यूमेंट्री में सलीम-जावेद की जोड़ी की कहानी दर्शायी गई है।

इस डॉक्यूमेंट्री के बहाने जावेद अख्तर फिल्म इंडस्ट्री में अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि आज भी वो उस समय को नहीं भूल पाए हैं, जब उनके पास खाने के पैसे नहीं थे और उन्हें भूखा रहना पड़ा था। उन्होंने मुंबई आने के बाद उन बुरे दौर को भी याद किया और रो पड़े।

जावेद अख्तर और उनके पुराने साथी सलीम खान ने अपने जीवन और करियर के बारे में प्राइम वीडियो की नई डॉक्यूमेंट्री सीरीज 'एंग्री यंग मैन' में बात की। इस शो में जावेद ने अपने करियर के शुरुआती दिनों को याद किया और बताया कि कैसे उन्होंने बहुत विश्वास के साथ घर छोड़ा था और मुंबई आ गए थे।
Sonal singh
अबकी बार, 500 पार?
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Joined: Mon Nov 18, 2024 3:19 pm

Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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बॉलीवुड के जाने-माने लेखक जावेद अख्तर ने काफी गाने लिखे हैं और फिल्में भी लिखी हैं बॉलीवुड में कोई भी लेखक जब शुरुआत में आता है तो काफी आर्थिक तंगी से गुजरता है नए लेखक हो या पुराने लेखक पुरानी जीवनी पर बात की जाए उसी में से एक जावेद अख्तर साहब है कुछ लोग अपनी सफलता पाकर यह सब भूल जाते हैं लेकिन जावेद अख्तर साबुन में से नहीं है जावेद अख्तर साहब को सब बातें अभी तक उनको एहसास करते हैं जब उनके पास कुछ भी नहीं हुआ करता था इस बात को समझते हुए आज भी आपके साथ बड़े प्रेम भाव से बात करते हैं और काम करने की सलाह देते हैं और आगे बढ़ाने को प्रेरणा देते रहते हैं
Sarita
अबकी बार, 500 पार?
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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बॉलीवुड के जाने-माने लेखक जावेद अख्तर ने काफी गाने लिखे हैं और फिल्में भी लिखी हैं बॉलीवुड में कोई भी लेखक जब शुरुआत में आता है तो काफी आर्थिक तंगी से गुजरता है नए लेखक हो या पुराने लेखक पुरानी जीवनी पर बात की जाए उसी में से एक जावेद अख्तर साहब है कुछ लोग अपनी सफलता पाकर यह सब भूल जाते हैं लेकिन जावेद अख्तर साबुन में से नहीं है जावेद अख्तर साहब को सब बातें अभी तक उनको एहसास करते हैं जब उनके पास कुछ भी नहीं हुआ करता था इस बात को समझते हुए आज भी आपके साथ बड़े प्रेम भाव से बात करते हैं और काम करने की सलाह देते हैं और आगे बढ़ाने को प्रेरणा देते रहते हैं
Harendra Singh
सात सो के बाद , देखो आठ सौ के ठाट!!!
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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LinkBlogs wrote: Tue Aug 20, 2024 9:39 am
हिंदी सिनेमा की मशहूर स्क्रिप्ट राइटर जोड़ी सलीम खान और जावेद अख्तर की जिंदगी पर बेस्ड डॉक्यूमेंट्री 'एंग्री यंग मैन' 20 अगस्त को प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुई। 3 एपिसोड वाली इस सीरीज का डायरेक्शन नम्रता राव ने किया है, जिन्होंने इस सीरीज के साथ बतौर डायरेक्टर डेब्यू भी किया है। इस डॉक्यूमेंट्री में सलीम-जावेद की जिंदगी के कई पहलुओं पर रोशनी डाली गई है। इसी सीरीज में गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर ने बॉम्बे जाने के बाद अपने कठोर संघर्षों के बारे में भी बात करते दिखे। डॉक्यूमेंट्री में बॉलीवुड की सबसे प्रभावशाली लेखक जोड़ी सलीम-जावेद की यात्रा, चुनौतियों और अंततः जीत के बारे में है।

भोपाल छोड़ जब आए मुंबई
जावेद अख्तर ने भोपाल के सैफिया कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। अपने ग्रेजुएशन के बाद जावेद अख्तर फिल्मी दुनिया में अपना करियर बनाने के लिए सपनों के शहर बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए। उन्होंने लेजेंड्री फिल्ममेकर गुरु दत्त और राज कपूर के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया। दोनों दिवंगत फिल्ममेकर्स को याद करते हुए जावेद अख्तर ने कहा- 'वे ऐसे निर्देशक थे जिनकी मैं उस समय बहुत प्रशंसा करता था। मुझे यकीन था कि मैं कुछ ही समय में खुद निर्देशक बन जाऊंगा।'

जिंदा रहने के लिए करना पड़ा संघर्षः जावेद अख्तर
अपने स्ट्रगल को याद करते हुए उन्होंने कहा- 'मैं ठीक पांच दिनों तक अपने पिता के घर में था, और फिर मैं अकेला चला गया।' जावेद अख्तर ने इस दौरान खुलासा किया कि क्योंकि, उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए वह दोस्तों के साथ रहते थे। कभी रेलवे स्टेशन, कभी पार्क तो कभी स्टूडियो कम्पाउंड के बेंच पर सोते थे। जिंदा रहने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। जावेद अख्तर के लिए सबसे कठिन दौर वो था, जब उनके पास पहनने और खाने के लिए कुछ नहीं था।

जावेद अख्तर के पास था एक ही ट्राउजर
जावेद अख्तर कहते हैं- 'मेरी आखिरी पैंट और एकमात्र पैंट इस हद तक फट गई थी कि उसे अब पहना नहीं जा सकता था। और मेरे पास कोई अन्य ट्राउजर नहीं थी।' उन्होंने याद किया कि कैसे उन्होंने 15 साल की उम्र में अपनी आंटी का घर छोड़ दिया था, जिसके बाद उन्होंने कभी भी अपने परिवार से मदद नहीं मांगी, उन्होंने इसे अपने दम पर करने का दृढ़ संकल्प किया था।



शबाना आजमी ने शेयर किया इमोशनल किस्सा
जावेद की पत्नी और दिग्गज अभिनेत्री शबाना आज़मी ने एक और इमोशनल किस्सा शेयर किया और खुलासा किया कि एक समय ऐसा भी था जब जावेद अख्तर ने तीन दिनों तक खाना नहीं खाया था। "भारी बारिश हो रही थी, और पास की इमारत के एक अपार्टमेंट से उन्होंने हल्की रोशनी चमकती देखी। उन्होंने वह रोशनी देखी और खुद से कहा-'मैं इस तरह मरने के लिए पैदा नहीं हुआ हूं। यह समय बीत जाएगा।''

कठिन समय को याद कर रोने लगे जावेद अख्तर
उस कठिन समय को याद करते हुए जावेद फूट-फूट कर रोने लगे और बोले- "अगर आप अपने जीवन में खाने या नींद से वंचित रहे हैं, तो यह आप पर गहरा प्रभाव छोड़ता है जिसे आप यह कभी नहीं भूल सकते। कभी-कभी मुझे बटर, जैम, हाफ फ्राय एग, कॉफी के साथ ट्रॉली पर नाश्ता परोसा जाता तो मैं मन ही मन सोचता हूं 'तेरी औकात थी? क्या मैं इसके लायक हूं?' अब भी, ऐसा लगता है कि यह नाश्ता मेरे लिए नहीं है'।
Source: https://www.indiatv.in/entertainment/bo ... 20-1068852
जावेद अख्तर की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो जीवन में कठिन परिस्थितियों से जूझ रहा है। भोपाल से मुंबई तक का उनका सफर केवल एक शहर की यात्रा नहीं, बल्कि संघर्ष, दृढ़ संकल्प और सफलता की अद्भुत कहानी है।

कठिन दौर की चुनौतियां:
जावेद अख्तर ने जिस गरीबी और संघर्ष का सामना किया, वह असामान्य है। एक समय ऐसा भी था जब उनके पास पहनने के लिए एक भी ढंग की पैंट नहीं थी। रेलवे स्टेशन और पार्क में सोने की मजबूरी और खाली पेट गुजारे दिन, उनके मजबूत इरादों का प्रमाण हैं।

उनकी कहानी बताती है कि कैसे परिस्थितियों को बेहतर बनाने की चाह इंसान को आगे बढ़ने का साहस देती है।
बिना परिवार की मदद लिए खुद को स्थापित करना उनका दृढ़ संकल्प दिखाता है।
सफलता की ओर कदम:
जावेद अख्तर की कड़ी मेहनत और अडिग इरादों ने उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से एक बना दिया।

सलीम खान के साथ मिलकर लिखी गई उनकी कहानियां जैसे "शोले", "दीवार", और "ज़ंजीर" ने हिंदी सिनेमा को नया आयाम दिया।
उनकी पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल सफलता दोनों ने यह साबित किया कि मुश्किल हालातों में भी उम्मीद और मेहनत रंग लाती है।
यह डॉक्यूमेंट्री सिर्फ सलीम-जावेद की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन अनगिनत कलाकारों की भी कहानी है, जो सपनों के शहर मुंबई में अपने लक्ष्य को पाने के लिए संघर्ष करते हैं।
Harendra Singh
सात सो के बाद , देखो आठ सौ के ठाट!!!
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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जावेद अख्तर और सलीम खान की जोड़ी न केवल हिंदी सिनेमा की पहचान है, बल्कि यह संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक कहानी भी है। 'एंग्री यंग मैन' डॉक्यूमेंट्री उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को बहुत ही ईमानदारी से दर्शाती है।

मुश्किल हालात और अदम्य साहस:
जावेद अख्तर की जिंदगी का सबसे कठिन दौर वह था, जब उनके पास खाने-रहने के लिए कुछ भी नहीं था।

यह जानकर आश्चर्य होता है कि एक इंसान, जो अपने सपनों को पाने के लिए रेलवे स्टेशन और पार्क में सोता था, आज भारत के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में गिना जाता है।
उनकी आत्मनिर्भरता और अपने सपनों को पूरा करने का जज्बा अद्भुत है।
सलीम-जावेद की सफलता:
जब जावेद अख्तर सलीम खान से मिले, तो उनकी जोड़ी ने इतिहास रच दिया। उन्होंने न केवल ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं, बल्कि हिंदी सिनेमा में "एंग्री यंग मैन" की छवि को अमर कर दिया।

'दीवार', 'शोले', और 'डॉन' जैसी फिल्में आज भी उनकी क्रिएटिविटी और मेहनत का प्रमाण हैं।
यह डॉक्यूमेंट्री इस बात को रेखांकित करती है कि सलीम-जावेद की जोड़ी ने सिनेमा के नियमों को कैसे बदला।
यह कहानी हर उस व्यक्ति को प्रेरित करेगी, जो अपने सपनों के पीछे मेहनत करने को तैयार है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल क्यों न हों।
Harendra Singh
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Re: जावेद अख्तर के पास जब पहनने को नहीं थे कपड़े, खाने की भी थी किल्लत, सालों बाद भी नहीं भूले हैं मुश्किल दिन

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जावेद अख्तर—संघर्ष, रचनात्मकता और प्रेरणा की कहानी
जावेद अख्तर की जिंदगी का सफर हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियां इंसान को मजबूत बनाती हैं। 'एंग्री यंग मैन' डॉक्यूमेंट्री में उनका संघर्ष और सफलता का सफर बहुत प्रभावी ढंग से पेश किया गया है।

संघर्ष के दिन:

भोपाल से मुंबई आने के बाद जावेद अख्तर को बुनियादी जरूरतों के लिए भी जूझना पड़ा।
उनके पास एक समय ऐसा था जब पहनने के लिए एकमात्र पैंट भी नहीं थी।
परिवार से मदद न मांगने का उनका फैसला दिखाता है कि उनके पास खुद पर भरोसा था।
रचनात्मकता की ऊंचाई:
जावेद अख्तर ने अपने संघर्ष को अपनी ताकत बनाया।

सलीम खान के साथ उनकी जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को 'शोले' जैसी कालजयी फिल्में दीं।
उनके लिखे डायलॉग और कहानियां आज भी हर पीढ़ी के दिलों में बसती हैं।
प्रेरणा की कहानी:
जावेद अख्तर का जीवन यह सिखाता है कि कठिन समय में भी अगर आप मेहनत और लगन के साथ आगे बढ़ते रहें, तो सफलता जरूर मिलेगी। यह डॉक्यूमेंट्री न केवल मनोरंजन है, बल्कि यह हर सपने देखने वाले व्यक्ति के लिए प्रेरणा है।
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