Source: https://www.hindwi.org/kavita/ek-wriksh ... arity-descअबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था—
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाज़े पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख़्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला,
राइफ़िल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल पत्तीदार,
पाँवों में फटा-पुराना जूता
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी ख़ाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त!”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंडी छाँव में
दरअसल, शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है—
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से
खाने को ज़हर हो जाने से :
बचाना है—जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है—मनुष्य को जंगल हो जाने से।
- कुँवर नारायण
एक वृक्ष की हत्या
एक वृक्ष की हत्या
Re: एक वृक्ष की हत्या
आपकी ये पोस्ट पद कर एक कहानी याद आ गयी। चलिए आपके साथ शेयर करता हूँ बताना पद कर की कैसी लगी
एक हरे-भरे गाँव में एक विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसे "बूढ़ा बाबा" कहकर पुकारते थे। उस वृक्ष की शाखाओं में सैकड़ों पक्षियों के घोंसले थे, गाँव के बच्चे उसकी छांव में खेलते, और बूढ़े उसकी छांव में बैठकर कहानियाँ सुनाते थे। बूढ़ा बाबा न केवल छाया देता था, बल्कि गाँव की यादों, खुशियों, और दुखों का एक गवाह भी था।
एक दिन शहर से कुछ लोग आए और उन्होंने उस वृक्ष को काटने का आदेश दे दिया। गाँव के लोग विरोध करते रहे, पर अधिकारियों ने कहा कि यह जगह अब एक बड़ी सड़क के निर्माण के लिए चुनी गई है। गाँववालों का दिल टूट गया, पर वे मजबूर थे।
वह दिन भी आया जब बूढ़ा बाबा की शाखाओं पर आरी चलाई गई। पक्षियों का कलरव थम गया, बच्चे उदास हो गए, और बूढ़े लोगों की आँखें नम हो गईं। जैसे-जैसे उसकी शाखाएँ कटती गईं, लगता था मानो गाँव का एक हिस्सा खत्म होता जा रहा हो।
अंततः, वृक्ष का तना भी गिर गया। जहाँ कभी बूढ़ा बाबा खड़ा था, वहाँ अब खालीपन और उदासी थी। कुछ दिनों बाद, गाँव में एक बड़ी सड़क बन गई। लेकिन हर गुजरते दिन, गाँव के लोग उस जगह को देख एक अजीब सा खालीपन महसूस करते, और बच्चों की आँखों में प्रश्न होता — "बूढ़ा बाबा कहां गए?"
वह वृक्ष अब नहीं था, पर उसकी यादें और उससे जुड़ी भावनाएं गाँव वालों के दिलों में हमेशा के लिए रह गईं। बूढ़ा बाबा ने जाते-जाते सबको सिखाया कि जीवन में हर रिश्ता कितना कीमती है, चाहे वह इंसान का हो या प्रकृति का।
सड़क बन जाने के बाद भी गाँव वाले उस जगह को खाली आँखों से देखते रहते, जहाँ कभी बूढ़ा बाबा खड़ा था। बच्चे अब भी खेलते, पर उनकी हंसी में वह मासूमियत नहीं रही जो बूढ़ा बाबा की छांव में हुआ करती थी। पक्षी भी कहीं और चले गए, उनकी चहचहाहट गाँव की हवा से गायब हो गई।
वह जगह हर किसी के लिए अब यादों का एक खाली बक्सा बन चुकी थी। गाँव की बूढ़ी दादी अक्सर कहतीं, "बूढ़ा बाबा ने हमारी खुशियों को समेटा और अपने साथ ले गए।" लोग धीरे-धीरे यह समझने लगे कि वह वृक्ष सिर्फ एक पेड़ नहीं था, बल्कि गाँव का अभिन्न हिस्सा था जिसने कई पीढ़ियों को पाला था, सुख-दुख में साथ दिया था।
गाँव के बच्चों ने एक दिन मिलकर एक योजना बनाई। वे पास के जंगल में गए और एक नन्हा पीपल का पौधा लाकर उसी जगह पर रोप दिया जहाँ बूढ़ा बाबा खड़ा था। उन्होंने प्रण किया कि वह नए पौधे की देखभाल करेंगे और उसे भी उतना ही बड़ा बनाएंगे जितना बूढ़ा बाबा था।
साल दर साल बच्चे बड़े हुए, बूढ़ा बाबा का पौधा भी। नई पीढ़ी ने पुराने पेड़ की कहानियाँ सुनीं और यह जाना कि कैसे एक वृक्ष न केवल छांव देता है, बल्कि रिश्तों की गर्माहट, यादों का साया और एक अटूट अपनापन भी। धीरे-धीरे, बूढ़ा बाबा का पौधा फिर से गाँव के दिलों में वही जगह बनाने लगा।
इस बार गाँव वाले जानते थे कि कोई भी सड़क, कोई भी विकास उनकी जड़ों को उनसे अलग नहीं कर सकता। बूढ़ा बाबा की कहानी एक यादगार सीख बन गई कि प्रकृति हमारी परंपरा, हमारा इतिहास और हमारी आत्मा का अंश है, जिसे हमें हर हाल में संजोकर रखना चाहिए।
एक हरे-भरे गाँव में एक विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसे "बूढ़ा बाबा" कहकर पुकारते थे। उस वृक्ष की शाखाओं में सैकड़ों पक्षियों के घोंसले थे, गाँव के बच्चे उसकी छांव में खेलते, और बूढ़े उसकी छांव में बैठकर कहानियाँ सुनाते थे। बूढ़ा बाबा न केवल छाया देता था, बल्कि गाँव की यादों, खुशियों, और दुखों का एक गवाह भी था।
एक दिन शहर से कुछ लोग आए और उन्होंने उस वृक्ष को काटने का आदेश दे दिया। गाँव के लोग विरोध करते रहे, पर अधिकारियों ने कहा कि यह जगह अब एक बड़ी सड़क के निर्माण के लिए चुनी गई है। गाँववालों का दिल टूट गया, पर वे मजबूर थे।
वह दिन भी आया जब बूढ़ा बाबा की शाखाओं पर आरी चलाई गई। पक्षियों का कलरव थम गया, बच्चे उदास हो गए, और बूढ़े लोगों की आँखें नम हो गईं। जैसे-जैसे उसकी शाखाएँ कटती गईं, लगता था मानो गाँव का एक हिस्सा खत्म होता जा रहा हो।
अंततः, वृक्ष का तना भी गिर गया। जहाँ कभी बूढ़ा बाबा खड़ा था, वहाँ अब खालीपन और उदासी थी। कुछ दिनों बाद, गाँव में एक बड़ी सड़क बन गई। लेकिन हर गुजरते दिन, गाँव के लोग उस जगह को देख एक अजीब सा खालीपन महसूस करते, और बच्चों की आँखों में प्रश्न होता — "बूढ़ा बाबा कहां गए?"
वह वृक्ष अब नहीं था, पर उसकी यादें और उससे जुड़ी भावनाएं गाँव वालों के दिलों में हमेशा के लिए रह गईं। बूढ़ा बाबा ने जाते-जाते सबको सिखाया कि जीवन में हर रिश्ता कितना कीमती है, चाहे वह इंसान का हो या प्रकृति का।
सड़क बन जाने के बाद भी गाँव वाले उस जगह को खाली आँखों से देखते रहते, जहाँ कभी बूढ़ा बाबा खड़ा था। बच्चे अब भी खेलते, पर उनकी हंसी में वह मासूमियत नहीं रही जो बूढ़ा बाबा की छांव में हुआ करती थी। पक्षी भी कहीं और चले गए, उनकी चहचहाहट गाँव की हवा से गायब हो गई।
वह जगह हर किसी के लिए अब यादों का एक खाली बक्सा बन चुकी थी। गाँव की बूढ़ी दादी अक्सर कहतीं, "बूढ़ा बाबा ने हमारी खुशियों को समेटा और अपने साथ ले गए।" लोग धीरे-धीरे यह समझने लगे कि वह वृक्ष सिर्फ एक पेड़ नहीं था, बल्कि गाँव का अभिन्न हिस्सा था जिसने कई पीढ़ियों को पाला था, सुख-दुख में साथ दिया था।
गाँव के बच्चों ने एक दिन मिलकर एक योजना बनाई। वे पास के जंगल में गए और एक नन्हा पीपल का पौधा लाकर उसी जगह पर रोप दिया जहाँ बूढ़ा बाबा खड़ा था। उन्होंने प्रण किया कि वह नए पौधे की देखभाल करेंगे और उसे भी उतना ही बड़ा बनाएंगे जितना बूढ़ा बाबा था।
साल दर साल बच्चे बड़े हुए, बूढ़ा बाबा का पौधा भी। नई पीढ़ी ने पुराने पेड़ की कहानियाँ सुनीं और यह जाना कि कैसे एक वृक्ष न केवल छांव देता है, बल्कि रिश्तों की गर्माहट, यादों का साया और एक अटूट अपनापन भी। धीरे-धीरे, बूढ़ा बाबा का पौधा फिर से गाँव के दिलों में वही जगह बनाने लगा।
इस बार गाँव वाले जानते थे कि कोई भी सड़क, कोई भी विकास उनकी जड़ों को उनसे अलग नहीं कर सकता। बूढ़ा बाबा की कहानी एक यादगार सीख बन गई कि प्रकृति हमारी परंपरा, हमारा इतिहास और हमारी आत्मा का अंश है, जिसे हमें हर हाल में संजोकर रखना चाहिए।
Re: एक वृक्ष की हत्या
johny888 wrote: ↑Sat Oct 26, 2024 2:47 pm आपकी ये पोस्ट पद कर एक कहानी याद आ गयी। चलिए आपके साथ शेयर करता हूँ बताना पद कर की कैसी लगी
एक हरे-भरे गाँव में एक विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसे "बूढ़ा बाबा" कहकर पुकारते थे। उस वृक्ष की शाखाओं में सैकड़ों पक्षियों के घोंसले थे, गाँव के बच्चे उसकी छांव में खेलते, और बूढ़े उसकी छांव में बैठकर कहानियाँ सुनाते थे। बूढ़ा बाबा न केवल छाया देता था, बल्कि गाँव की यादों, खुशियों, और दुखों का एक गवाह भी था।
एक दिन शहर से कुछ लोग आए और उन्होंने उस वृक्ष को काटने का आदेश दे दिया। गाँव के लोग विरोध करते रहे, पर अधिकारियों ने कहा कि यह जगह अब एक बड़ी सड़क के निर्माण के लिए चुनी गई है। गाँववालों का दिल टूट गया, पर वे मजबूर थे।
वह दिन भी आया जब बूढ़ा बाबा की शाखाओं पर आरी चलाई गई। पक्षियों का कलरव थम गया, बच्चे उदास हो गए, और बूढ़े लोगों की आँखें नम हो गईं। जैसे-जैसे उसकी शाखाएँ कटती गईं, लगता था मानो गाँव का एक हिस्सा खत्म होता जा रहा हो।
अंततः, वृक्ष का तना भी गिर गया। जहाँ कभी बूढ़ा बाबा खड़ा था, वहाँ अब खालीपन और उदासी थी। कुछ दिनों बाद, गाँव में एक बड़ी सड़क बन गई। लेकिन हर गुजरते दिन, गाँव के लोग उस जगह को देख एक अजीब सा खालीपन महसूस करते, और बच्चों की आँखों में प्रश्न होता — "बूढ़ा बाबा कहां गए?"
वह वृक्ष अब नहीं था, पर उसकी यादें और उससे जुड़ी भावनाएं गाँव वालों के दिलों में हमेशा के लिए रह गईं। बूढ़ा बाबा ने जाते-जाते सबको सिखाया कि जीवन में हर रिश्ता कितना कीमती है, चाहे वह इंसान का हो या प्रकृति का।
सड़क बन जाने के बाद भी गाँव वाले उस जगह को खाली आँखों से देखते रहते, जहाँ कभी बूढ़ा बाबा खड़ा था। बच्चे अब भी खेलते, पर उनकी हंसी में वह मासूमियत नहीं रही जो बूढ़ा बाबा की छांव में हुआ करती थी। पक्षी भी कहीं और चले गए, उनकी चहचहाहट गाँव की हवा से गायब हो गई।
वह जगह हर किसी के लिए अब यादों का एक खाली बक्सा बन चुकी थी। गाँव की बूढ़ी दादी अक्सर कहतीं, "बूढ़ा बाबा ने हमारी खुशियों को समेटा और अपने साथ ले गए।" लोग धीरे-धीरे यह समझने लगे कि वह वृक्ष सिर्फ एक पेड़ नहीं था, बल्कि गाँव का अभिन्न हिस्सा था जिसने कई पीढ़ियों को पाला था, सुख-दुख में साथ दिया था।
गाँव के बच्चों ने एक दिन मिलकर एक योजना बनाई। वे पास के जंगल में गए और एक नन्हा पीपल का पौधा लाकर उसी जगह पर रोप दिया जहाँ बूढ़ा बाबा खड़ा था। उन्होंने प्रण किया कि वह नए पौधे की देखभाल करेंगे और उसे भी उतना ही बड़ा बनाएंगे जितना बूढ़ा बाबा था।
साल दर साल बच्चे बड़े हुए, बूढ़ा बाबा का पौधा भी। नई पीढ़ी ने पुराने पेड़ की कहानियाँ सुनीं और यह जाना कि कैसे एक वृक्ष न केवल छांव देता है, बल्कि रिश्तों की गर्माहट, यादों का साया और एक अटूट अपनापन भी। धीरे-धीरे, बूढ़ा बाबा का पौधा फिर से गाँव के दिलों में वही जगह बनाने लगा।
इस बार गाँव वाले जानते थे कि कोई भी सड़क, कोई भी विकास उनकी जड़ों को उनसे अलग नहीं कर सकता। बूढ़ा बाबा की कहानी एक यादगार सीख बन गई कि प्रकृति हमारी परंपरा, हमारा इतिहास और हमारी आत्मा का अंश है, जिसे हमें हर हाल में संजोकर रखना चाहिए।