' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

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ritka.sharma
Posts: 201
Joined: Fri Aug 16, 2024 1:45 pm

Re: ' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

Post by ritka.sharma »

वैसे तो मैं बचपन से कई नाटक देखा तथा पढ़े हैं ,परंतु रचनाकार धर्मवीर भारती ने जो "अंधा युग "नाटक लिखा है उसने मेरे रोम रोम को प्रभावित किया है ।उनका यह नाटक 1955 में प्रकाशित हुआ था। इसके लिए उन्हें 1989 में संगीत अकादमी पुरस्कार भी मिला है। उन्होंने अंधा युग नाटक को महाभारत के 18 दिन की संध्या से शुरू किया ,जब समस्त कौरब नगरी तथा पांडवों का नाश हो गया था ।उन्होंने उस समय की प्रवृत्ति को आधुनिकता के साथ ऐसे जोड़ा है, मानो उन्होंने आधुनिक जीवन को पहले ही जी लिया हो। प्रत्येक नाटक की भांति इस नाटक को भी मंगलाचरण से प्रारंभ किया गया। प्रारंभ में धर्मवीर भारती जी ने भगवान नारायण को लिया है ।नाटक के प्रारंभ से पूर्व कभी लिखते हैं कि यह अंधा युग अवतरित हुआ है जिसमें स्थितियां, मनोवृतियां ,आत्माएं सब विकृत है एक मर्यादा की पतली सी डोर है पर वह भी उलझी है दोनों ही पक्षों में, सिर्फ कृष्णा में ही साहस है इसे सुलझाने का। रचनाकार धर्मवीर भारती कि ये पंक्तियां मेरे दिल को छू जाती है। रचनाकार धर्मवीर भारती ने अपने नाटक अंधा युग में 15 पात्र लिए हैं जिसमें से 14 पुरुष और एक स्त्री है ,उनके नाम है प्रहरी नंबर एक ,प्रहरी नंबर दो ,धृतराष्ट्र, गांधारी कृष्णा, युधिष्ठिर ,कृत वर्मा ,संजय कृपाचार्य, याचक , युयुत्सु,बलराम व्यास व्यास। धर्मवीर भारती ने कहा कि जिस प्रकार महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया उसमें दोनों दोनों ने कहीं न कहीं अधर्म को अपनाया है, इस युद्ध में दोनों ही पक्षों ने मर्यादा का हनन किया है ,पांडवों ने उसे कुछ कम तो कौरवों ने ज्यादा तोड़ा है ।धर्मवीर भारती लिखते हैं कि यदि धृतराष्ट्र चाहता तो युद्ध को रोक सकता था, परंतु वह पुत्र मोह में फंस गया था ।वह आंखों से तो अंधा तो था ही ,साथ में वह मन की दृष्टि से भी अंधा था। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि दूसरे विश्व युद्ध की भांति अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो संसार का सर्वनाश हो जाएगा जिस प्रकार कौरवों के अंदर सत्ता को पाने की इच्छा थी, उनके अंदर असीमित इच्छाएं थी, इस प्रकार सोवियत संघ रूस और अमेरिका भी सत्ता के पीछे लोलूप थे। कौरव जानते थे कि उनके पास कृपाचार्य , भीष्म जैसे वीर योद्धा है उनका पूर्ण विश्वास था कि उनकी ही जीत होगी ,इस प्रकार अमेरिका ने सोचा कि मेरे साथ भी अन्य देश है रूस ने सोचा मेरे साथी भी अन्य महान शक्तियां हैं, जिसके कारण उनके बीच द्वितीय विश्व युद्ध हुआ। उनके अंदर भी सत्ता को प्राप्त करने की लालसा थी यह द्वितीय विश्व युद्ध इतना भयानक हुआ कि इसमें अनेक लोगों की जान गई। रचनाकर के कहने का तात्पर्य यहां ऐसा है कि युद्ध भले ही दो देशों के बीच हुआ हो परंतु उसमें अनेक बेकसूर भी मारे जाते हैं। जिस प्रकार कृपाचार्य ,भीष्म ने अ धर्म को जानते हुए भी कौरवों का साथ दिया, उसी प्रकार रूस और अमेरिका का साथ भी अन्य देशों ने दिया। इसके माध्यम से धर्मवीर भारती यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि युद्ध किसी भी परिस्थिति का समाधान नहीं होता है। इसमें केवल विनाशी होता है। इस नाटक में उन्होंने उसे भ्याभय स्थिति को दर्शाया है जब अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था, उसके बाद उस क्षेत्र में आज तक ना जीवन हुआ ना वनस्पति। नाटक के माध्यम से वे कहना चाहते हैं कि सब कुछ खत्म होने के बाद भी दोनों पक्षों में शांति नहीं होती है, चाहे वह विजई पक्ष हो या हारा हुआ युयुत्सु जो कौरवों का भाई था परंतु उसने धर्म का साथ दिया। जिसके कारण जब उसके सारे भाई मारे गए तो वह अपनी माता गांधारी के पास आया तो उसको अपनी मां से घृणा सहनी पड़ी ।उसके माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि वर्तमान समय में जो व्यक्ति सच का साथ देता है उसे लोग आसानी से जीने नहीं देते हैं। अश्वत्थामा जैसी लोग पशु बन जाते हैं उसने अपनी बदले की आग में उतर के गर्भ में पल रहे पांडव वंश को ही खत्म कर दिया कहने का तात्पर्य है कि युद्ध न केवल वर्तमान परिस्थितियों को ही प्रभावित करता है परंतु आने वाली पीढ़ी को भी नष्ट कर देता है। इसमें उन्होंने कृष्ण के रूप में भारत को लिया है, क्योंकि भारत एक शांतिप्रिय देश है केवल वह ही समस्याओं को समझ सकता है। और इनका समाधान कर सकता है।धर्मवीर भारती के इस नाटक के बारे में लक्ष्मी नारायण ने कहा है कि चित्रों के माध्यम से ही कथा वस्तु बनती है नाटक के जो तत्व है उन्होंने जो रंग भरे है, उसको कहीं और नहीं देखा गया। अंधा युग एक गंभीर नाटक है। जो लोगों को वर्तमान में अंधेरे युग के बारे में सोचने पर विवश करता है। उस समय की परिस्थितियों को रचनाकार धर्मवीर भारती ने आधुनिकता के साथ ऐसे जोड़ा मानो वे इसके समकालीन हो ।मैं भी अपने वर्तमान जीवन में इन उदाहरणों को अपने आसपास देखती हूं एवं महसूस करती हूं इसलिए मुझे अंधा युग नाटक अत्यधिक प्रिय है।


आभार रितका जी,

आपको प्रोत्साहन स्वरूप हास्य कविता की पुस्तक एवं 501/- रुपये मूल्य का नकद पुरुस्कार किया जाएगा।

कृपया अपना पूरा पता थ्रेड की मूल पोस्ट पर दिए गए ईमेल में भेजने का कष्ट करें। साथ में online payment transfer / cash deposit हेतु जरूरी जानकारी भी भेजें ।

आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
Aditya Shekhar
Posts: 1
Joined: Wed Sep 11, 2024 10:09 pm

Re: ' मेरी प्रिय ' भाषा

Post by Aditya Shekhar »

हिंदी दिवस पर खास काव्य रचना

शीर्षक – हिंदी हमारा गौरव

हिंद का गौरव, जन–जन की भाषा है हिंदी
भारत की बोली, कण–कण की आशा है हिंदी
स्वजनों के अश्रुओं की पराकाष्ठा है हिंदी
सेनानियों हेतु स्वराज की एक धारा है हिंदी
तिरंगे की आन, जवानों की शान है हिंदी
तन में प्राण, राष्ट्र की पहचान है हिंदी
अचल में तान, दरिया का गान है हिंदी
न्याय हेतु प्रमाण, इष्ट का सम्मान है हिंदी
गुप्त की राष्ट्रीयता, पंत की प्राकृत माया है हिंदी
महादेवी का संसार, दिनकर की धार्मिक छाया है हिंदी
सतत विकास में निर्मित स्वदेश ने पाया है हिंदी
संस्कृत की संतान वह, पारम्परिक काया है हिंदी
देश का दर्पण, अखंड प्रत्याशा है हिंदी
हिंद का गौरव, जन–जन की भाषा है हिंदी।

– आदित्य शेखर


आभार आदित्य जी,

आपको प्रोत्साहन स्वरूप हास्य कविता की पुस्तक एवं 501/- रुपये मूल्य का नकद पुरुस्कार किया जाएगा।

कृपया अपना पूरा पता थ्रेड की मूल पोस्ट पर दिए गए ईमेल में भेजने का कष्ट करें। साथ में online payment transfer / cash deposit हेतु जरूरी जानकारी भी भेजें ।

आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
Hitesh Kumar
Posts: 1
Joined: Wed Sep 11, 2024 10:15 pm

Re: ' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

Post by Hitesh Kumar »

एक लड़की की कहानी जो घर में सबसे छोटी लाडली और सबसे सयानी पढ़ने में होशियार दिमाग से तेज कुछ बड़ी हुई तो समझ गई घर की जिम्मेदारी उसका बड़ा होकर छोटे की तरह खिल खिलाना उसे ना वह मनी, यह है एक चुलबुली सी लड़की की कहानी। पढ़ने में थी वह होशियार एक बार मिला उसे एक लड़का उसे हुआ उससे प्यार लड़का था ऐसा जिसे पसंद नहीं था उसे लड़की का औरों के साथ प्यार भरा व्यवहार वह उसे रोकना टोकता अरे यहां मत जाओ उससे बात मत करो यह मत पहनो लड़की समझ बैठी थी से प्यार न जाने वह क्यों खिंची चली चलती गई उसकी और उसका दिल दिमाग पर न था कोई जोर लड़की को पसंद था आखिर खिलाना दूसरों के साथ घुलना मिलना उसने उस लडके की एक न मानी लड़के ने उसे धमकाया अगर बात नहीं मानी तो तेरी खत्म कर दूंगा कहानी इतना सुन वह लड़की खुद को कर देती कमरे में बंद न किसी से बात करती ना वह हस्ती ना करती अपनी मनमानी घर वालों और पढ़ाई से वह होने लगी दूर क्योंकि उसका प्यार था क्रूर वह रहती सहमी सी घर वालों को ना बताया पापा ने पूछा आजकल उखड़ी उखड़ी रहती है मेरे चांद का मुंह क्यों मुरझाया हिम्मत ना हुई कि पापा को कुछ बता सकूं बस कस के पापा को गले लगाया पापा बोले क्या बात है कहा पापा आपके जैसा प्यार कहीं ना पाया उठ खड़ी हुई वह उसे अपना जीवन जीना था अपने हिसाब से उस लड़के का सामना कर उसे बाहर फेंक आई अपनी जिंदगी की किताब से खुश थीं वह अब घुलने मिलने लगी थी अपनी करने लगी थी मनमानी यह है एक लड़की की कहानी जो घर में सबसे छोटी लाडली और सबसे सयानी।


आभार हितेश जी,

आपको प्रोत्साहन स्वरूप हास्य कविता की पुस्तक एवं 250/- रुपये मूल्य का गिफ्ट हेम्पर प्रेषित किया जाएगा।

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आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
Ruchi Agarwal
Posts: 1
Joined: Fri Sep 06, 2024 11:27 pm

Re: ' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

Post by Ruchi Agarwal »

              मेरी प्रिय भाषा
By: Ruchi Agarwal, Wednesday 11september 2024

हिंदी मेरी प्रिय भाषा है। यह हमारी राष्ट्रीय भाषा होने के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी है। मेरी मातृभाषा होने के कारण मेरे जीवन से इसका अत्यधिक जुड़ाव भी है और सर्वाधिक उपयोग भी। सर्वदा उपयोग किए जाने के कारण हिंदी भाषा पर मेरी पकड़ मजबूत हो गई है। जिसके कारण इस भाषा को उपयोग करना मुझे बहुत सरल लगता है और लेखन एवं वाचन में मुझे ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ती ।
                          इसका मुख्य कारण यह है की जब मैं विद्यालय जाया करती थी तब मेरे हिंदी के जो शिक्षक थे वे बहुत अच्छे थे,  उनके पढ़ने का तरीका इतना सरल एवं मनभावन था कि हिंदी भाषा में मुझे सदैव उच्च अंक मिलते , पाठ्यक्रम ज्यादा मुखस्त न भी होते थे तब भी मेरे शिक्षक के पढ़ाए पाठ मस्तिष्क में छायाचित्र की तरह उभर आते और प्रश्न हल करना अति सरल लगता। इसी कारणवश मुझे हिंदी भाषा से अत्यधिक लगाव होता चला गया। मुख्य रूप से हिंदी के पाठ से ज्यादा कविताएं मेरे मन को अत्यंत लुभाती थी । अंत के तुकबंदी वाले शब्द मानो मेरे मन में बस जाते थे। ऊंचे स्वर में अच्छी लय के साथ कविताएं पढ़ना मुझे अंतरिम खुशी प्रदान करता।

भाषा कोई भी खराब नहीं होती ,भिन्न-भिन्न प्रकार की भाषाएं सीखना कोई गलत बात नहीं ,वे कहीं ना कहीं हमारे काम आती है ।भाषा तो एक माध्यम है एक जरिया है अपनी बातों और विचारों को आदान-प्रदान करने का परंतु जिस देश में हम रहते हैं ,जो हमारी जन्म भूमि है, जिस राष्ट्र से हम जुड़े हैं वहां की भाषा का हमें सम्मान करना चाहिए एवं विशेष महत्व देना चाहिए ।यदि हम अपनी संस्कृति को अपने राष्ट्र की मुख्य भाषा को नहीं समझेंगे एवं सम्मान नहीं देंगे तो बदलती पीढ़ियों के साथ हमारी राष्ट्रीय भाषा विलुप्त होती चली जाएगी।

तो भारत के वासी होने के कारण यह हमारा फर्ज बनता है कि हम अपनी भारतीय भाषाओं को यथोचित सम्मान दें और सबसे आगे रखें एवं ज्यादा से ज्यादा उपयोग मे लाकर उसकी गरिमा बढ़ाएं ।अपने राष्ट्र की भाषा का जब सशक्तिकरण होगा तो हमारे राष्ट्र का भी निश्चित रूप से उत्थान होगा।


आभार रुचि जी,

आपको प्रोत्साहन स्वरूप हास्य कविता की पुस्तक एवं 501/- रुपये मूल्य का नकद पुरुस्कार किया जाएगा।

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आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
Avinash Kumar Sah
Posts: 3
Joined: Fri Sep 06, 2024 11:03 pm

Re: 'मेरा प्रिय' लेखक

Post by Avinash Kumar Sah »

'मेरे प्रिय'लेखक हैं प्रेमचंद
जिसने साहित्य को दी नई धार ,
हिंदी को विकास की पटरी पर दौड़ाकर
जन -जन तक किया प्रसार |
करके उर्दू भाषा से लेखन का प्रारंभ
फिर हिंदी में किया संग्रह विस्तार ,
रूढ़िवाद, संवेदना, यथार्थ आधार से
करवाया पाठक वर्गों को दीदार |
कभी उपन्यास में 'निर्मला','वरदान'
कभी कहानी में 'जुलूस' ,'आत्माराम' ,
तो कभी नाटक में 'सृष्टि','संग्राम' रचकर
निबंध 'आदर्श जीवन' से पेश किया सुविचार |
कृषक ,दलितों को केंद्र में रखकर
उठाया अन्याय के विरुद्ध आवाज ,
तत्कालीन समाज पर व्यंग करके
बताया घटित कथा का सार |
खुद को समर्पित राष्ट्र प्रेम में
किया 'सोजे-ए- वतन' से ऐसा प्रकाश ,
जिससे क्रांति की चिंगारी भड़क उठी ,
भयभीत हुई ब्रिटिश सरकार|
नमस्कार! मैं हूँ अविनाश
इस पद्य का रचनाकार ,
धनपत राय से कलम के सिपाही तक ,
यात्रा को शत्‌ शत्‌ करता हूँ प्रणाम |

-Avinash Kumar Sah


आभार अविनाश जी,

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आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
Last edited by Avinash Kumar Sah on Thu Sep 12, 2024 2:50 pm, edited 1 time in total.
Rinki Ranjani
Posts: 1
Joined: Sat Sep 07, 2024 9:10 pm

Re: ' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

Post by Rinki Ranjani »

हिन्दी दिवस पर कविता

भारत देश के हम निवासी
हर बोली मिठास भरी
हिन्दी भाषा को बोले हम
जिसमें शामिल बारह खड़ी
अ से अनार तक थे अबोध
पढ़ कर ज्ञ तक हुए ज्ञानी

खास हिन्दी भाषा यह
देव नगरी लिपि से ली गई
यह भाषा हमें सिखाती है
हिन्दी बोलने पर ही
इस समाज के लोग कहें
तुम्हें पढ़ना लिखना आता है

बड़े बड़े ज्ञानी विद्वान
लिख गए थे इतिहास
कहानी संत फकीरा के
या दोहे हो कबीरा के
चाहे बाबा साहेब का
लिखा हो भारत संविधान

पढ़ लिखकर हिन्दी ना बोल
बनाएंगे सब माजाक
यही घटिया सोच
हिन्दी भाषा को खाती है
हिन्दी बोलने में हमें
शर्म भला क्यों आती हैं

गर्व से कहो
हम हिन्दू स्तानी
हमें हिन्दी बोलनीं आती है।
रिंकी रंजनी


आभार रिंकी जी,

आपको प्रोत्साहन स्वरूप हास्य कविता की पुस्तक एवं 501/- रुपये मूल्य का नकद पुरुस्कार किया जाएगा।

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आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
AdminV
Site Admin
Posts: 34
Joined: Sat Jul 13, 2024 3:44 am
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Re: ' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

Post by AdminV »

आप सभी का आभार !

कृपया नोट करें - प्रतियोगिता में सम्मिलित होने की अंतिम तिथि (Deadline/ Last Date of Entering into this competition ) : Extended indefinitely पुरुस्कार समाप्त होने तक जारी रखिए !!

आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
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हिंदी है हम, वतन हैं हिंदुस्तान हमारा!
arti panwar
Posts: 1
Joined: Sat Sep 14, 2024 10:03 pm

Re: ' मेरा प्रिय ' प्रतियोगिता

Post by arti panwar »

*मै हिंदी हूँ*

अधूरा है सनातन धर्म मेरे बिना
धर्म पूरा करती एक हिस्सा हूं मैं,
मीरा की वीणा में भी मैं हूं,
कबीर के दोहों में भी मैं हूं,
तुम भूल पाओगे कैसे मुझे,
तुम्हारे लहू के हर एक कतरे में मैं हूं,
मैं हिंदी हूँ l

गीता के सार में भी मैं हूं
रहिमन के भावार्थ में भी मैं हूं,
तुलसी की रामचरित्र भी मैं हूं,
भर दे जो तुम्हारे हर अंग में प्रेम भाव
रसों का वो श्रृंगार रस भी मैं हूं,
मैं हिंदी हूँ l


राष्ट्रगीत के तान में भी मैं हूं
राष्ट्रगान के गान में भी मैं हूं,
कश्मीर से कन्याकुमारी की जुबां भी मैं हूं,
भुला पाओगे कैसे मुझे तुम,
देश की हर एक फिजा में मैं हूं,
मैं हिन्दी हूँ l

अनेकता में एकता की शान भी मैं हूँ,
हिंदुस्तान के हर पन्ने का गुणगान भी मैं हूँ,
पुकारे जिसे मां कह कर वो स्वाभिमान भी मैं हूं,
जो सजा दे तुम्हारे हर अंग को वीरता के रंग से,
वो केसरिया रंग हिंदुस्तान भी मैं हूँ,
मैं हिंदी हूँ l आरती पंवार
उत्तराखंड उत्तरकाशी
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