मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद राजस्थान सरकार भी हिंदी भाषा में एमबीबीएस शुरू करेगी
राजस्थान सरकार ने राज्य के कॉलेजों में अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा में भी मेडिकल शिक्षा देने की घोषणा की है। यह घोषणा हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर की गई। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने भी हिंदी में एमबीबीएस की घोषणा की है।
राजस्थान सरकार चरणबद्ध तरीके से इस भाषा को लागू कर रही है, जिसके तहत राज्य के दो मेडिकल कॉलेज - जोधपुर का संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज और मारवाड़ मेडिकल यूनिवर्सिटी से संबद्ध बाड़मेर का मेडिकल कॉलेज - 2024-2025 शैक्षणिक सत्र से इस बदलाव को अपनाएंगे।
इस बीच, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शनिवार को घोषणा की कि राज्य में एमबीबीएस पाठ्यक्रम अब चालू शैक्षणिक सत्र से हिंदी में भी पढ़ाया जाएगा।
हिंदी भाषा में एमबीबीएस
Re: हिंदी भाषा में एमबीबीएस
अब, छात्र इन राज्यों में हिंदी भाषा में एमबीबीएस सीख सकते हैं
1. मध्य प्रदेश
2. छत्तीसगढ़
3. राजस्थान
4. बिहार
5. उत्तराखंड
जल्द ही इस सूची में और राज्यों के शामिल होने की उम्मीद है....
1. मध्य प्रदेश
2. छत्तीसगढ़
3. राजस्थान
4. बिहार
5. उत्तराखंड
जल्द ही इस सूची में और राज्यों के शामिल होने की उम्मीद है....
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Re: हिंदी भाषा में एमबीबीएस
एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में होने से इन राज्यों में स्वास्थ्य की सुविधाओं में काफी इजाफा होने की उम्मीद लगाई जा रही है लेकिन संज्ञान रहे की प्राइवेट कॉलेज का भाषा से कोई लेना देना अभी भी नहीं होगा और यह सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए सिर्फ लागू होगी।
एमबीबीएस सरकारी कॉलेज में करने से उनके विद्यार्थियों के रेपुटेशन में काफी इजाफा होता है जिसे कुछ राज्यों ने लगाम देने के लिए उनके निजी प्रैक्टिस पर एक समय अवधि तक की रोक लगा दी है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश में कुछ साल पहले ही कर दी थी।
सरकारी मेडिकल कॉलेज में इलाज करने के लिए निकले टपके के लोग जाते हैं जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान बहुत कम मात्रा का होता है इसलिए अपनी बीमारी को बता पाना इलाज की रोकथाम और उसकी चर्चा अगर हिंदी में की जाएगी तो मरीज और डॉक्टर दोनों में आपसी समझ और समन्वय बहुत अच्छे से बन पाएगा और एक अच्छे इलाज की व्यवस्था सरकार के द्वारा होती हुई दिखेगी।
इसके विपरीत मालदार पार्टी और पैसे वाले लोग हमेशा प्राइवेट मेडिकल कॉलेज का ही चुनाव करते हैं जहां वह अपनी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करके इमरजेंसी केस में भी अंग्रेजी में बोलकर अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं और गरीब जनता वहां कभी सपने में भी जाने का नहीं सोच पाती क्योंकि एक बार जाने पर 1 10 लाख से करोड़ तक का व्यापार वहां देखने को मिलता है।
गरीबों के स्वास्थ्य सुधार के लिए ऐसे ठोस कदम सरकार की अच्छी नियत और सोच को बढ़ावा देती है लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि जो निजी अस्पताल अंग्रेजी माध्यम से चल रहे हैं वहां पर इन्वेस्टर और संस्थापक कोई नेता मंत्री राजनेता व्यापारी ही आदि हैं जिनका मूल मकसद किसी का जीवन बचाने से कहीं अधिक कितना अधिक समेट लें इस पर ध्यान होता है।
गरीबों की जीवन की भी कीमत होनी चाहिए और उन्हें उनकी भाषा में उन्हें इलाज मिले या सुनिश्चित करना हर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार का प्राथमिक सोच होना चाहिए देखते हैं की हिंदी भाषा में एमबीबीएस की पढ़ाई करने से इन राज्यों में अगले 5 सालों में क्या परिवर्तन देखने को मिलेगा।
एमबीबीएस सरकारी कॉलेज में करने से उनके विद्यार्थियों के रेपुटेशन में काफी इजाफा होता है जिसे कुछ राज्यों ने लगाम देने के लिए उनके निजी प्रैक्टिस पर एक समय अवधि तक की रोक लगा दी है और इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश में कुछ साल पहले ही कर दी थी।
सरकारी मेडिकल कॉलेज में इलाज करने के लिए निकले टपके के लोग जाते हैं जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान बहुत कम मात्रा का होता है इसलिए अपनी बीमारी को बता पाना इलाज की रोकथाम और उसकी चर्चा अगर हिंदी में की जाएगी तो मरीज और डॉक्टर दोनों में आपसी समझ और समन्वय बहुत अच्छे से बन पाएगा और एक अच्छे इलाज की व्यवस्था सरकार के द्वारा होती हुई दिखेगी।
इसके विपरीत मालदार पार्टी और पैसे वाले लोग हमेशा प्राइवेट मेडिकल कॉलेज का ही चुनाव करते हैं जहां वह अपनी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करके इमरजेंसी केस में भी अंग्रेजी में बोलकर अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं और गरीब जनता वहां कभी सपने में भी जाने का नहीं सोच पाती क्योंकि एक बार जाने पर 1 10 लाख से करोड़ तक का व्यापार वहां देखने को मिलता है।
गरीबों के स्वास्थ्य सुधार के लिए ऐसे ठोस कदम सरकार की अच्छी नियत और सोच को बढ़ावा देती है लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि जो निजी अस्पताल अंग्रेजी माध्यम से चल रहे हैं वहां पर इन्वेस्टर और संस्थापक कोई नेता मंत्री राजनेता व्यापारी ही आदि हैं जिनका मूल मकसद किसी का जीवन बचाने से कहीं अधिक कितना अधिक समेट लें इस पर ध्यान होता है।
गरीबों की जीवन की भी कीमत होनी चाहिए और उन्हें उनकी भाषा में उन्हें इलाज मिले या सुनिश्चित करना हर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार का प्राथमिक सोच होना चाहिए देखते हैं की हिंदी भाषा में एमबीबीएस की पढ़ाई करने से इन राज्यों में अगले 5 सालों में क्या परिवर्तन देखने को मिलेगा।
"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"
Re: हिंदी भाषा में एमबीबीएस
यह एक बहुत ही बढ़िया और सराहनीये फैला है जिससे कई स्टूडेंस को मौका मिलेगा अपने सपने साकार करने का। एमबीबीएस करना सिर्फ एक डिग्री हासिल करना नहीं है, बल्कि यह एक सम्मानजनक पेशा चुनने का एक अवसर है। डॉक्टर बनकर कोई भी इंसान न केवल समाज की सेवा कर सकते हैं बल्कि एक सफल और संतुष्ट जीवन भी जी सकते हैं। यदि आप एक सफल और संतुष्ट जीवन जीना चाहते हैं और समाज की सेवा करना चाहते हैं तो एमबीबीएस आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
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Re: हिंदी भाषा में एमबीबीएस
हिंदी भाषा में एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करना वाकई एक सुविधाजनक और एक आसान माध्यम है जिससे हम अंग्रेजी से अनभिज्ञ विज्ञान के जानकारी जो सरकारी माध्यमों से शिक्षा प्राप्त करते हैं उनके विश्लेषण क्षमता को हम आम जनमानस के लिए प्रयोग में ला सकते हैं।johny888 wrote: ↑Mon Oct 14, 2024 10:49 pm यह एक बहुत ही बढ़िया और सराहनीये फैला है जिससे कई स्टूडेंस को मौका मिलेगा अपने सपने साकार करने का। एमबीबीएस करना सिर्फ एक डिग्री हासिल करना नहीं है, बल्कि यह एक सम्मानजनक पेशा चुनने का एक अवसर है। डॉक्टर बनकर कोई भी इंसान न केवल समाज की सेवा कर सकते हैं बल्कि एक सफल और संतुष्ट जीवन भी जी सकते हैं। यदि आप एक सफल और संतुष्ट जीवन जीना चाहते हैं और समाज की सेवा करना चाहते हैं तो एमबीबीएस आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
लेकिन दिक्कत यह है की हिंदी भाषा प्रयोग करना आज के समाज में हीन भावना की दृष्टि से देखा जाता है तो अगर कोई भी डॉक्टर हिंदी भाषा में बात करता है तो उसे निम्न दृष्टि से देखा जाता है।
लेकिन भारत में बहुत सारे डॉक्टर आपको ऐसे मिल सकते हैं जो गरीब तबके के लोगों की मदद के लिए हमेशा अग्रसर रह सकते हैं लेकिन यह लिखने में ही या पढ़ने में ही सिर्फ अच्छा लग सकता है।
आप एमबीबीएस की सरकारी विद्यालयों में लगने वाली फीस हॉस्टल का खर्चा और 4 साल की फीस जोड़ेंगे तो समझ में आ जाएगा कि कोई भी विद्यार्थी बिना सरकारी लोन के डॉक्टर नहीं बन सकता है या फिर उसको किसी बैंक से लोन आदि लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
आप किसी भी डॉक्टर के पास जाएं तो उसकी मजबूरी है क्योंकि दवा का नाम भी अंग्रेजी माध्यम में ही आता है और ना ही मेडिकल स्टोर वाला आपको हिंदी में लिखित कोई भी दवा दे पानी में सक्षम होगा क्योंकि रोजमर्रा के जीवन में वैसा नहीं करता है। वह आपको एक टक देखेगा और शायद समझ ना पाए तो उसे हंसी भी आ सकती है।
"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"