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Missing those old days....
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Re: Missing those old days....
भाईसाहब अगर ओल्ड डेज की बात करे तो स्कूल के दिन बड़े याद आते है। वो सुबह सुबह उठ कर स्कूल के लिए जाना और घर आते ही खाने से पहले खेलने जाना और थोड़े बड़े हुए मतलब १० या ११ क्लास में आये तो दोस्तों के साथ कहीं बैठ कर गप्पे लड़ना। अब ये सब कहाँ रहा सब कुछ सोशल मीडिया पर ही हो जाता है। और संडे को भी सोशल मीडिया पर बिजी रहते है।
Re: Missing those old days....
हाँ! आज की पीढ़ी के बच्चे कभी उस सुनहरे दौर का अनुभव नहीं कर पाएंगे जब दोस्तों के साथ असली दुनिया में समय बिताया जाता था।
johny888 wrote: Wed Nov 06, 2024 10:02 pm भाईसाहब अगर ओल्ड डेज की बात करे तो स्कूल के दिन बड़े याद आते है। वो सुबह सुबह उठ कर स्कूल के लिए जाना और घर आते ही खाने से पहले खेलने जाना और थोड़े बड़े हुए मतलब १० या ११ क्लास में आये तो दोस्तों के साथ कहीं बैठ कर गप्पे लड़ना। अब ये सब कहाँ रहा सब कुछ सोशल मीडिया पर ही हो जाता है। और संडे को भी सोशल मीडिया पर बिजी रहते है।
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Re: Missing those old days....
बिल्कुल सही कहा आपने पुराने दिनों को याद किया जाए तो बाकी दिन तो दोस्तों के साथ खेल को धोता था ही लेकिन संडे को सुबह से शाम तक पिलाम पलों का दौर चलता था बचपन में तो मैं घर में ही अपने खेलने रहा हूं लेकिन बाद में क्रिकेट ग्राउंड में बहुत समय बीतता था तो एक तरह से मैं खेलों में ड्यूटी निभा चुका हूं।johny888 wrote: Wed Nov 06, 2024 10:02 pm भाईसाहब अगर ओल्ड डेज की बात करे तो स्कूल के दिन बड़े याद आते है। वो सुबह सुबह उठ कर स्कूल के लिए जाना और घर आते ही खाने से पहले खेलने जाना और थोड़े बड़े हुए मतलब १० या ११ क्लास में आये तो दोस्तों के साथ कहीं बैठ कर गप्पे लड़ना। अब ये सब कहाँ रहा सब कुछ सोशल मीडिया पर ही हो जाता है। और संडे को भी सोशल मीडिया पर बिजी रहते है।
हमारे दोस्तों में बहुत ज्यादा चतुराई थी तो ऐसे में मैं बेवकूफ बन जाता था और ऐसे लोगों से खुद को दूर ही रखना चाहता था तो ऐसे गपशप करने वाले दोस्तों का समय मेरे पास टेन प्लस टू के बाद आया जहां हम कुछ दोस्त बैठकर शतरंज की गोटे पर गांव खेलते थे और हारने वाले को कुछ ना कुछ नियम के मुताबिक करना होता था जैसे चाय बनाना या समोसे लाना।
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Re: Missing those old days....
शतरंज तो हमने भी बहुत खेला। मैं और मेरा छोटा भाई रात के दो-दो बजे तक शतरंज की बाजी लगाते रहते थे। मम्मी खाना खाने को कहती रहती लेकिन हमारे पास फुर्सत ही कहां होती थी की बाजी को छोड़कर जाए तो कई बार मम्मी को गुस्सा आता तो मम्मी हमारे गोटियां उठा कर ले जाती थी। जैसे ही हमें पता चला कि अब मम्मी हमारा गेम बिगाड़ने के लिए आ रही है हम दोनों गोटियों को संभालने में लग जाते कई बार खेल बिगड़ जाता कई बार हम लोग बचा लेते थे।manish.bryan wrote: Fri Nov 15, 2024 7:55 pmबिल्कुल सही कहा आपने पुराने दिनों को याद किया जाए तो बाकी दिन तो दोस्तों के साथ खेल को धोता था ही लेकिन संडे को सुबह से शाम तक पिलाम पलों का दौर चलता था बचपन में तो मैं घर में ही अपने खेलने रहा हूं लेकिन बाद में क्रिकेट ग्राउंड में बहुत समय बीतता था तो एक तरह से मैं खेलों में ड्यूटी निभा चुका हूं।johny888 wrote: Wed Nov 06, 2024 10:02 pm भाईसाहब अगर ओल्ड डेज की बात करे तो स्कूल के दिन बड़े याद आते है। वो सुबह सुबह उठ कर स्कूल के लिए जाना और घर आते ही खाने से पहले खेलने जाना और थोड़े बड़े हुए मतलब १० या ११ क्लास में आये तो दोस्तों के साथ कहीं बैठ कर गप्पे लड़ना। अब ये सब कहाँ रहा सब कुछ सोशल मीडिया पर ही हो जाता है। और संडे को भी सोशल मीडिया पर बिजी रहते है।
हमारे दोस्तों में बहुत ज्यादा चतुराई थी तो ऐसे में मैं बेवकूफ बन जाता था और ऐसे लोगों से खुद को दूर ही रखना चाहता था तो ऐसे गपशप करने वाले दोस्तों का समय मेरे पास टेन प्लस टू के बाद आया जहां हम कुछ दोस्त बैठकर शतरंज की गोटे पर गांव खेलते थे और हारने वाले को कुछ ना कुछ नियम के मुताबिक करना होता था जैसे चाय बनाना या समोसे लाना।