Harendra Singh wrote: Mon Dec 09, 2024 6:47 am
johny888 wrote: Sat Oct 26, 2024 2:34 pm
दिलों का मिलन, आत्माओं का संगम,
प्रेम की कहानी, अनंत का संगम।
साथ चलना, साथ रहना, जीवन भर,
पति-पत्नी का प्यार, एक अटूट बंधन।
पत्नी : अजी सुनते हो दो किलो मटर ले लूं ?
पति : हां, ले लो जो ठीक लग रहा है कर लो
पत्नी: राय नहीं मांग रही आपकी, पूछ रही हूं कि छील लोगे इतने कि कम लूं ?
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
बशीर बद्र
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
राहत इंदौरी
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
बशीर बद्
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
उबैदुल्लाह अलीम