A.K.SAH wrote: ↑Fri Sep 20, 2024 12:13 am कुर्सी की पेटी बांधकर सुन लें
मेरे प्रिय भाषा हिंदी की गाथा,
लगभग दसवीं शताब्दी में उदय के साथ
शुरू हुई थी अविस्मरणीय यात्रा |
संस्कृत ,प्राकृत से लेकर जन्म
तुलसी ,सूर ,मीरा ने रखा तरोताजा,
भक्ति आंदोलन की पटरी पर दौड़ाकर
जन -जन तक पहुँचाई साहित्यिक धारा |
परन्तु समय- समय पर शासकों ने
व्यावहारिक भाषा में, ऐसा फेरबदल कर डाला ,
जिससे धीरे-धीरे दरकिनार होकर
हिंदी ने गौण रूप का पद संभाला |
फिर ‘कविवचनसुधा’ को रचकर
भारतेन्दु ने पुनः उसे जगाया ,
कभी नाटक ,तो कभी काव्य के जरिये
पाठक वर्गों को रुचिकर बनाया |
तत्पश्चात ‘सरस्वती’ की छत्रछाया में
प्रेमचंद ने नई धार देकर,
प्रसाद ,सुदर्शन जैसे कवि ,लेखक संग
लेखन से भारत में तहलका मचाया |
इस प्रकार साहित्य के मतवालों ने
हिंदी जगत का अंधियारा मिटाया
कि सर्वगुण दृश्य देखकर ,संविधान सभा ने
देश की राजभाषा के ओहदे पर बिठाया |
A.k.SAH
आभार A.k.SAH जी,
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