Source: https://www.hindwi.org/kavita/mushkil-s ... arity-descवह बीच सड़क पर चल रहा था
हाथ में अपनी जीत का झंडा लिए
और नारे लगाता हुआ
यह मानकर कि उसके पीछे
उसके समर्थकों का जुलूस है
तमाशाई नहीं
ग़दर के लखनऊ से भी ज़्यादा पुराना
शायद वह तब का था
जब अवध के नवाबों की राजधानी
फ़ैज़ाबाद थी, या और पहले का
जब अयोध्या बसी किसी पुराकाल में
वरना कैसे होते उसके अंदर
ऐसे-ऐसे पवित्र खँडहर,
बीहड़ और पेचदार गलियाँ,
भुतही-इमारतें, टूटी-फूटी सड़कें,
अँधेरी बेहाल जगहें जिनका ओर-न-छोर,
कैसे होता वह ज्वालामुखी अतल अंधकूप
जिसमें झाँकते ही चक्कर आ जाता,
कैसे होते वे तमाम लोग उसकी दुनिया में
जो आते—बसते—और चल बसते—
अपने माल-असबाब जहाँ-तहाँ छोड़कर।
एक डरावना पशु जब भी
एक डरे हुए प्राणी पर झपटता
उसके उत्खनन के लिए प्रेरित होता हूँ
एक पुरातत्ववेत्ता की तरह :
किसी भी पुरानी या नई बस्ती में
जब भी आग लगती
तब मिट चुकी सभ्यता के सुराग़ खोजते हुए
जो तथ्य हाथ लगते उन्हें देखकर
हैरत से डूब जाता हूँ एक रहस्यमय चुप्पी में
जैसे समुद्रतल में निमग्न कृष्ण की द्वारिका।
समय की सत्ता न तो आत्यंतिक है।
न प्रावेशिक : न संग्रही, न विग्रही :
शायद वह केवल वैचारिक है जिसकी
विराट निरावधि में
बल खाते असंख्य ब्रह्मांडों को
केवल किसी अनुमान-दृष्टि से ही देखा जा सकता है!
एक मारक विषाणु की तरह
अपने ही शरीर के गढ़ में घुसकर
भारी मारकाट मचाती हुई विनाश-लीला
इतिहास नहीं, एक दुःस्वप्न है—
एक सुस्त अजगर की तरह ख़ुद को ही
अपनी दुम की ओर से निगलने लगना
किसी भौगोलिक अ-घटना के कश में
खिंचकर समा जाना है
काल के खोखले विवर में पुनः
एक ऐसी सृष्टि का जो अभी
मुश्किल से शुरू ही हुई है।
- कुँवर नारायण
मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
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मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
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- सात सो!!!! पोस्टिंग के साथ !!! लाहौल विला कुव्वत!!!
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
मुश्किलों से ही तो ये दुनिया बनी,
हर कदम पर ठोकर, पर राहों में चमक नई।
अंधेरे में जलता एक छोटा सा दीप,
हर दर्द के पीछे है उम्मीद की लकीर।
बनती बिगड़ती, ये ज़िंदगी की जंजीर,
संघर्ष में ही छुपा सच्चा नगीना सा पीर।
छोटे-छोटे पलों में ढूंढें खुशी का सार,
मुश्किल से ही निकले ये दुनिया का आकार।
संघर्ष की मिट्टी से बने हैं सपने,
हर ठोकर से हम खुद को संवारते अपने।
हर कदम पर ठोकर, पर राहों में चमक नई।
अंधेरे में जलता एक छोटा सा दीप,
हर दर्द के पीछे है उम्मीद की लकीर।
बनती बिगड़ती, ये ज़िंदगी की जंजीर,
संघर्ष में ही छुपा सच्चा नगीना सा पीर।
छोटे-छोटे पलों में ढूंढें खुशी का सार,
मुश्किल से ही निकले ये दुनिया का आकार।
संघर्ष की मिट्टी से बने हैं सपने,
हर ठोकर से हम खुद को संवारते अपने।
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
बहुत मुश्किल है बहुत परेशानियां है
यह दुनिया क्या है दुनिया
जी का जंजाल है बेडि़या है
ना छोड़कर जाने को मन करता है
ना रहा जाता है यहां
दर्द और आंसुओं से बनी यह दुनिया
पता नहीं कितनी मुश्किल से शुरू हुई है दुनिया।
यह दुनिया क्या है दुनिया
जी का जंजाल है बेडि़या है
ना छोड़कर जाने को मन करता है
ना रहा जाता है यहां
दर्द और आंसुओं से बनी यह दुनिया
पता नहीं कितनी मुश्किल से शुरू हुई है दुनिया।
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
दुनिया में रह कर ही, दुनिया के साथ हमें दुनिया को समझना होता है
आज भी बुरी क्या है कल भी ये बुरी क्या थी
इस का नाम दुनिया है ये बदलती रहती है
बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख
नज़र उठा कि ये दुनिया है देखने के लिए बड़ी मुश्किल से शुरू हुई है दुनिया है।
आज भी बुरी क्या है कल भी ये बुरी क्या थी
इस का नाम दुनिया है ये बदलती रहती है
बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख
नज़र उठा कि ये दुनिया है देखने के लिए बड़ी मुश्किल से शुरू हुई है दुनिया है।
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- अबकी बार, 500 पार?
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
ये कैसी दुनिया है, ये कैसी कहानी,
जहां इंसान का इंसान से ही नाता नही,
खून के रिश्ते भी, अब बन गए हैं बेगाने,
भाईचारे की बातें किताबों में रह गईं सुहाने।
जो पहले कभी मिलकर रहते थे,
अब एक दूसरे से ही जलते हैं,
धन और दौलत के नशे में,
इंसानियत को शर्मिंदा कर बैठते हैं।
लोग इतना मतलबी कैसे हो सकते हैं?
निजी स्वार्थ के लिए बदल जाते हैं,
रिश्तों की अहमियत को यूँ कैसे भुला देते हैं
अपने फायदे के लिए दिल को छल देते हैं। बड़ी मुश्किल से शुरू हुई इस दुनिया की कहानी
जहां इंसान का इंसान से ही नाता नही,
खून के रिश्ते भी, अब बन गए हैं बेगाने,
भाईचारे की बातें किताबों में रह गईं सुहाने।
जो पहले कभी मिलकर रहते थे,
अब एक दूसरे से ही जलते हैं,
धन और दौलत के नशे में,
इंसानियत को शर्मिंदा कर बैठते हैं।
लोग इतना मतलबी कैसे हो सकते हैं?
निजी स्वार्थ के लिए बदल जाते हैं,
रिश्तों की अहमियत को यूँ कैसे भुला देते हैं
अपने फायदे के लिए दिल को छल देते हैं। बड़ी मुश्किल से शुरू हुई इस दुनिया की कहानी
Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
भाईचारे की बातें किताबों में रह गईं सुहाने।
जो पहले कभी मिलकर रहते थे,
अब एक दूसरे से ही जलते हैं,
धन और दौलत के नशे में,
इंसानियत को शर्मिंदा कर बैठते हैं।
लोग इतना मतलबी कैसे हो सकते हैं?
निजी स्वार्थ के लिए बदल जाते हैं,
रिश्तों की अहमियत को यूँ कैसे भुला देते हैं
अपने फायदे के लिए दिल को छल देते हैं। बड़ी मुश्किल से शुरू हुई इस दुनिया की कहानी
जो पहले कभी मिलकर रहते थे,
अब एक दूसरे से ही जलते हैं,
धन और दौलत के नशे में,
इंसानियत को शर्मिंदा कर बैठते हैं।
लोग इतना मतलबी कैसे हो सकते हैं?
निजी स्वार्थ के लिए बदल जाते हैं,
रिश्तों की अहमियत को यूँ कैसे भुला देते हैं
अपने फायदे के लिए दिल को छल देते हैं। बड़ी मुश्किल से शुरू हुई इस दुनिया की कहानी
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
इस दुनिया में जीने की कठिनाइयाँ और संघर्ष
इस दुनिया में जीना है बहुत कठिन,
हर कदम पर मिलती हैं नई मुसीबतें, नए ग़म।
सपने जिनसे दिल को खुशी मिलती है,
वही कभी टूटते हैं, कभी डर से घबराती हैं।
मुसीबतों के रास्ते हैं अनगिनत,
हर दिन नई चुनौतियाँ, हर पल कोई जख्म।
उम्मीदों की राहों में कांटे हैं बिछे,
फिर भी दिल उम्मीदों से कभी नहीं रुका।
लोग कहते हैं, समय सब ठीक कर देगा,
पर दर्द अक्सर बिना आवाज़ के दिल में पलता
इस दुनिया में जीना है बहुत कठिन,
हर कदम पर मिलती हैं नई मुसीबतें, नए ग़म।
सपने जिनसे दिल को खुशी मिलती है,
वही कभी टूटते हैं, कभी डर से घबराती हैं।
मुसीबतों के रास्ते हैं अनगिनत,
हर दिन नई चुनौतियाँ, हर पल कोई जख्म।
उम्मीदों की राहों में कांटे हैं बिछे,
फिर भी दिल उम्मीदों से कभी नहीं रुका।
लोग कहते हैं, समय सब ठीक कर देगा,
पर दर्द अक्सर बिना आवाज़ के दिल में पलता
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- सात सो के करीब, आजकल से पोस्टिंग के साथ ही रोमांस चल रिया है!
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
जीवन के संघर्षों से जूझते हुए
जीवन के संघर्षों में हर कदम मुश्किल है,
हर राह पर दर्द, हर मोड़ पर उलझन है।
फिर भी हार मत मानो, अपने हौंसले को जगाओ,
आंधियों से भी एक दीप जलाओ।
विपत्तियाँ आएं, तो न घबराओ,
समझो कि यह समय भी निकल जाएगा।
साहस और संयम से मुसीबतें आसान बनेंगी,
हर अंधेरे में, एक रोशनी मिल जाएगी।
सपनों का पीछा करो, डर को छोड़ दो,
असफलता से ही सफलता की ओर बढ़ो।
कभी गिरो, कभी संभलो, फिर से उठो,
यह जीवन एक यात्रा है, न रुकने दो।
जीवन का संघर्ष सिखाता है हमें जीना,
हर पल को अपने हौंसले से संवारा करो।
जो भी हो, विश्वास रखो खुद पर,
सफलता निश्चित है, बस कर्म करो।
जीवन के संघर्षों में हर कदम मुश्किल है,
हर राह पर दर्द, हर मोड़ पर उलझन है।
फिर भी हार मत मानो, अपने हौंसले को जगाओ,
आंधियों से भी एक दीप जलाओ।
विपत्तियाँ आएं, तो न घबराओ,
समझो कि यह समय भी निकल जाएगा।
साहस और संयम से मुसीबतें आसान बनेंगी,
हर अंधेरे में, एक रोशनी मिल जाएगी।
सपनों का पीछा करो, डर को छोड़ दो,
असफलता से ही सफलता की ओर बढ़ो।
कभी गिरो, कभी संभलो, फिर से उठो,
यह जीवन एक यात्रा है, न रुकने दो।
जीवन का संघर्ष सिखाता है हमें जीना,
हर पल को अपने हौंसले से संवारा करो।
जो भी हो, विश्वास रखो खुद पर,
सफलता निश्चित है, बस कर्म करो।
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Re: मुश्किल से शुरू हुई दुनिया
वह बीच सड़क पर चल रहा था
हाथ में अपनी जीत का झंडा लिए
और नारे लगाता हुआ
यह मानकर कि उसके पीछे
उसके समर्थकों का जुलूस है
तमाशाई नहीं
ग़दर के लखनऊ से भी ज़्यादा पुराना
शायद वह तब का था
जब अवध के नवाबों की राजधानी
फ़ैज़ाबाद थी, या और पहले का
जब अयोध्या बसी किसी पुराकाल में
वरना कैसे होते उसके अंदर
ऐसे-ऐसे पवित्र खँडहर,
बीहड़ और पेचदार गलियाँ,
भुतही-इमारतें, टूटी-फूटी सड़कें,
अँधेरी बेहाल जगहें जिनका ओर-न-छोर,
कैसे होता वह ज्वालामुखी अतल अंधकूप
जिसमें झाँकते ही चक्कर आ जाता,
कैसे होते वे तमाम लोग उसकी दुनिया में
जो आते—बसते—और चल बसते—
अपने माल-असबाब जहाँ-तहाँ छोड़कर
हाथ में अपनी जीत का झंडा लिए
और नारे लगाता हुआ
यह मानकर कि उसके पीछे
उसके समर्थकों का जुलूस है
तमाशाई नहीं
ग़दर के लखनऊ से भी ज़्यादा पुराना
शायद वह तब का था
जब अवध के नवाबों की राजधानी
फ़ैज़ाबाद थी, या और पहले का
जब अयोध्या बसी किसी पुराकाल में
वरना कैसे होते उसके अंदर
ऐसे-ऐसे पवित्र खँडहर,
बीहड़ और पेचदार गलियाँ,
भुतही-इमारतें, टूटी-फूटी सड़कें,
अँधेरी बेहाल जगहें जिनका ओर-न-छोर,
कैसे होता वह ज्वालामुखी अतल अंधकूप
जिसमें झाँकते ही चक्कर आ जाता,
कैसे होते वे तमाम लोग उसकी दुनिया में
जो आते—बसते—और चल बसते—
अपने माल-असबाब जहाँ-तहाँ छोड़कर