एक माँ की बेबसी

महफिल यहां जमाएं....
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Realrider
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Joined: Tue Jul 16, 2024 8:47 pm

एक माँ की बेबसी

Post by Realrider »

न जाने किस अदृश्य पड़ोस से

निकल कर आता था वह

खेलने हमारे साथ—

रतन, जो बोल नहीं सकता था

खेलता था हमारे साथ

एक टूटे खिलौने की तरह

देखने में हम बच्चों की ही तरह

था वह भी एक बच्चा।

लेकिन हम बच्चों के लिए अजूबा था

क्योंकि हमसे भिन्न था।

थोड़ा घबराते भी थे हम उससे

क्योंकि समझ नहीं पाते थे

उसकी घबराहटों को,

न इशारों में कही उसकी बातों को,

न उसकी भयभीत आँखों में

हर समय दिखती

उसके अंदर की छटपटाहटों को।

जितनी देर वह रहता

पास बैठी उसक माँ

निहारती रहती उसका खेलना।

अब जैसे-जैसे

कुछ बेहतर समझने लगा हूँ

उनकी भाषा जो बोल नहीं पाते हैं

याद आती

रतन से अधिक

उसकी माँ की आँखों में

झलकती उसकी बेबसी।

- कुँवर नारायण
Source: https://www.hindwi.org/kavita/ek-man-ki ... arity-desc
johny888
Posts: 308
Joined: Sun Oct 13, 2024 12:32 am

Re: एक माँ की बेबसी

Post by johny888 »

कोख में पाले, सीने से लगाया,
छोटे से बच्चे को बड़ा किया।
दिन रात मेहनत की, त्याग दिया सब कुछ,
बच्चे की खुशी के लिए, झेला हर दुख।

बच्चा जब बीमार पड़ता,
माँ का दिल रोता, आँखें भर आतीं।
देखती रहती बेबस, दर्द सहती,
अपने बच्चे को संभालती।

बच्चा जब बड़ा होता,
रास्ते भटक जाता,
माँ की आँखों में आंसू,
दिल में दर्द छुपाती।

कभी समझता नहीं, माँ की पीड़ा,
रह जाती है अकेली, माँ की जिंदगी।
Bhaskar.Rajni
Posts: 183
Joined: Sun Nov 10, 2024 9:39 pm

Re: एक माँ की बेबसी

Post by Bhaskar.Rajni »

अपने बच्चों की आंख में आंसू
कभी नहीं देख पाती है मां
आंखों से रोती, दिल से रोती
बहुत बेबस हो जाती है मां

मां की बेबसी उसके दिल से पूछो
जब बच्चे को खिलौना नहीं दे पाती है मां
सारी दुनिया से अकेली भिड़ ले
अपने बच्चों को दुखी नहीं देख पाती है मां
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