उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के शीर्ष भारतीय लेखक

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Realrider
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उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के शीर्ष भारतीय लेखक

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उन्नीसवीं सदी के लेखक

1. रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1941): कवि, लेखक और संगीतकार, जिन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। उनकी प्रसिद्ध कृति "गितांजलि" है।

2. गोपाल कृष्ण गोखले (1866-1915): समाज सुधारक और राजनीतिक नेता, जिन्होंने समाज में सुधार के लिए कई लेखन किए।

3. जगन्नाथ दास (1869-1944): साहित्यकार और समाज सुधारक, जिन्होंने हिंदी और संस्कृत में अनेक काव्य रचनाएँ कीं।

4. मुल्कराज आनंद (1905-2004): हिंदी और अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, जिन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया।

बीसवीं सदी के लेखक

1. प्रेमचंद (1880-1936): हिंदी और उर्दू के महान लेखक, जिन्हें "कृष्णा" और "गबन" जैसे उपन्यासों के लिए जाना जाता है।

2. सचिदानंद हीरानंद वात्स्यायन (गुलजार) (1906-1981): हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक और कवि, जिन्हें उनकी कविता और कहानी के लिए सराहा गया।

3. फिराक गोरखपुरी (1896-1982): उर्दू कवि और साहित्यकार, जिनकी कविताएँ प्रेम और मानवता के विषयों पर आधारित हैं।

4. भीष्म साहनी (1915-2003): उपन्यासकार और नाटककार, जिन्होंने विभाजन और उसके प्रभावों पर कई महत्वपूर्ण रचनाएँ कीं।

5. आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941): साहित्य समीक्षक और हिंदी लेखक, जिन्होंने हिंदी साहित्य की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

6. सिद्धार्थशंकर त्रिपाठी (1930-1997): उपन्यासकार और कवि, जिन्होंने हिंदी साहित्य में नई धाराएँ स्थापित कीं।

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manish.bryan
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Re: उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के शीर्ष भारतीय लेखक

Post by manish.bryan »

उनकी 19वीं और 20वीं साड़ी के लिखे के बारे में या पोस्ट काफी उल्लेखनीय है और मेरे हिसाब से अगर मैं देखूं तो 19वीं साड़ी में जितने भी लेखक थे उनमें समाज सुधार की भावना काफी प्रगाढ़ रूप से व्याप्त थी।

20वीं साड़ी में जो लेखक हुए हैं वह ज्यादातर या तो साहित्य के समीक्षक रहे हैं या मानवी भावनाओं के ऊपर अपने लेखन शैली के माध्यम से उनको व्यक्त किया है।

दोनों दशकों के लेखकों के बीच में एक बात या समान रूप से समझ में आती है कि उन्हें मनुष्यों की काफी अच्छी परख थी जिसे वह अपने लेखन माध्यम से व्यक्त कर पाने में सहज बुद्धि से उपयोग कर पाते थे।

हालांकि रविंद्र नाथ टैगोर और प्रेमचंद जी साहित्य के हीरे की भांति हिंदी साहित्य में सुशोभित है जिनकी कोई काट अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाई है।
"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं"
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