विधियां जो मैंने स्कूल के दिनों में तनाव प्रबंधन के लिए अपनाईं।
Posted: Thu Nov 21, 2024 10:56 am
स्कूल के दिनों में तनाव प्रबंधन का सबसे अच्छा तरीका... प्यारी यादें... ❤
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मैं भी अपने स्कूल टाइम पर पेंसिल को चपाती नहीं थी मैं पेंसिल की निब से रबड़ में बहुत सारे छेद करती थी। उसकी वजह से पूरी रबर खराब हो जाती थीऔर जब वह मिटटी थी तो काला काला हो जाता था.। एक मुझे स्कूल टाइम में चौख खाने का बहुत शौक था मैं चौख बहुत खाती थी। टीचर की टेबल से छुप छुप कर रख लिया करती थी।Bhaskar.Rajni wrote: Thu Nov 28, 2024 9:27 pm हां मैं पेंसिल को पीछे से चबा जाती थी। जब भी कोई टेंशन होती तो पेंसिल को जमाना शुरू कर देना मेरे पास ऐसी कोई पेंसिल नहीं थी जो कि पीछे से मेरे द्वारा चबाई गई ना हो। एक अजीब सा आनंद आता था उसे पेंसिल को चबाने में... जब दूसरे बच्चों की पेंसिल साफ सुथरी देखती तब महसूस भी होता था कि मेरी पेंसिल ऐसे चबी हुई ...
लेकिन मुझे पता ही नहीं चलता था पेंसिल हाथ में आई एक तरफ से छीली और दूसरी तरफ से कब चबा दी गई।
मैं चौक नहीं खाती थी मैं दीवारों पर से सीमेंट उतार उतार के खाती थी वह मुझे अच्छा लगता था। जब दीवार बनाई जाती है और उसे पर प्लास्टर नहीं होता है थोड़ा-थोड़ा सा जो सीमेंट बाहर निकला होता वह अच्छा लगता था मुझे। आजकल फास्ट फूड खाने से लोगों के पेट में पथरियां बन जा रही हैं लेकिन बालाजी की कृपा से मुझे ऐसा कभी कोई शिकायत नहीं आई सीमेंट भी पचा लियाSonal singh wrote: Wed Dec 11, 2024 3:13 pmमैं भी अपने स्कूल टाइम पर पेंसिल को चपाती नहीं थी मैं पेंसिल की निब से रबड़ में बहुत सारे छेद करती थी। उसकी वजह से पूरी रबर खराब हो जाती थीऔर जब वह मिटटी थी तो काला काला हो जाता था.। एक मुझे स्कूल टाइम में चौख खाने का बहुत शौक था मैं चौख बहुत खाती थी। टीचर की टेबल से छुप छुप कर रख लिया करती थी।Bhaskar.Rajni wrote: Thu Nov 28, 2024 9:27 pm हां मैं पेंसिल को पीछे से चबा जाती थी। जब भी कोई टेंशन होती तो पेंसिल को जमाना शुरू कर देना मेरे पास ऐसी कोई पेंसिल नहीं थी जो कि पीछे से मेरे द्वारा चबाई गई ना हो। एक अजीब सा आनंद आता था उसे पेंसिल को चबाने में... जब दूसरे बच्चों की पेंसिल साफ सुथरी देखती तब महसूस भी होता था कि मेरी पेंसिल ऐसे चबी हुई ...
लेकिन मुझे पता ही नहीं चलता था पेंसिल हाथ में आई एक तरफ से छीली और दूसरी तरफ से कब चबा दी गई।
यह तो काफी मजेदार बात रही मैंने आज भी कई बेसिक के टीचरों को देखा है जो रबर पर निशाना बनाया करते हैं फूल बना दिया करते हैं पेपर कटिंग करते रहते हैं मेरा बेटा तो अपने पेंसिल बॉक्स से खेलने लगता है उसने मुझे बताया कि क्लास के बच्चे अलग-अलग तरह से अपना एंटरटेनमेंट करते हैं जैसे कुछ अपने टिफिन के साथ ही खेल रहे होते हैं कुछ पेंसिल बॉक्स के साथ कुछ अपने जैकेट की डोरी के साथ ही खेल रहे होते हैं कुछ बच्चे आपस में मारपीट करके एंजॉय कर रहे होते हैंSonal singh wrote: Wed Dec 11, 2024 3:13 pmमैं भी अपने स्कूल टाइम पर पेंसिल को चपाती नहीं थी मैं पेंसिल की निब से रबड़ में बहुत सारे छेद करती थी। उसकी वजह से पूरी रबर खराब हो जाती थीऔर जब वह मिटटी थी तो काला काला हो जाता था.। एक मुझे स्कूल टाइम में चौख खाने का बहुत शौक था मैं चौख बहुत खाती थी। टीचर की टेबल से छुप छुप कर रख लिया करती थी।Bhaskar.Rajni wrote: Thu Nov 28, 2024 9:27 pm हां मैं पेंसिल को पीछे से चबा जाती थी। जब भी कोई टेंशन होती तो पेंसिल को जमाना शुरू कर देना मेरे पास ऐसी कोई पेंसिल नहीं थी जो कि पीछे से मेरे द्वारा चबाई गई ना हो। एक अजीब सा आनंद आता था उसे पेंसिल को चबाने में... जब दूसरे बच्चों की पेंसिल साफ सुथरी देखती तब महसूस भी होता था कि मेरी पेंसिल ऐसे चबी हुई ...
लेकिन मुझे पता ही नहीं चलता था पेंसिल हाथ में आई एक तरफ से छीली और दूसरी तरफ से कब चबा दी गई।
स्कूल में बच्चे तो कुछ भी करते रहते हैं उनके लिए तो बस जो चीज दिख जाए वही मजेदार बना लेते हैं। पेंसिल बॉक्स हम लंच बॉक्स हो बोतल हो उन्हें खेलने से मतलब होता है। आजकल के बच्चे यह सब नहीं करते हैं की पेंसिल चबा रहे हैं रबड़ में छेद कर रहे हैं वह तो सीधे आप इतनी बात तो नहीं होते हैं आजकल के बच्चे इतनी बातें करते हैं की पूरी क्लास में दिन भर बातें। आपस में झगड़ा करते रहेंगे और एक दूसरे को शिकायत लगाते रहेंगे कागज फाड़ फाड़ के फेंकते रहेंगे अब तो यही उनका एंटरटेनमेंट है।Suman sharma wrote: Thu Dec 12, 2024 5:32 amयह तो काफी मजेदार बात रही मैंने आज भी कई बेसिक के टीचरों को देखा है जो रबर पर निशाना बनाया करते हैं फूल बना दिया करते हैं पेपर कटिंग करते रहते हैं मेरा बेटा तो अपने पेंसिल बॉक्स से खेलने लगता है उसने मुझे बताया कि क्लास के बच्चे अलग-अलग तरह से अपना एंटरटेनमेंट करते हैं जैसे कुछ अपने टिफिन के साथ ही खेल रहे होते हैं कुछ पेंसिल बॉक्स के साथ कुछ अपने जैकेट की डोरी के साथ ही खेल रहे होते हैं कुछ बच्चे आपस में मारपीट करके एंजॉय कर रहे होते हैंSonal singh wrote: Wed Dec 11, 2024 3:13 pmमैं भी अपने स्कूल टाइम पर पेंसिल को चपाती नहीं थी मैं पेंसिल की निब से रबड़ में बहुत सारे छेद करती थी। उसकी वजह से पूरी रबर खराब हो जाती थीऔर जब वह मिटटी थी तो काला काला हो जाता था.। एक मुझे स्कूल टाइम में चौख खाने का बहुत शौक था मैं चौख बहुत खाती थी। टीचर की टेबल से छुप छुप कर रख लिया करती थी।Bhaskar.Rajni wrote: Thu Nov 28, 2024 9:27 pm हां मैं पेंसिल को पीछे से चबा जाती थी। जब भी कोई टेंशन होती तो पेंसिल को जमाना शुरू कर देना मेरे पास ऐसी कोई पेंसिल नहीं थी जो कि पीछे से मेरे द्वारा चबाई गई ना हो। एक अजीब सा आनंद आता था उसे पेंसिल को चबाने में... जब दूसरे बच्चों की पेंसिल साफ सुथरी देखती तब महसूस भी होता था कि मेरी पेंसिल ऐसे चबी हुई ...
लेकिन मुझे पता ही नहीं चलता था पेंसिल हाथ में आई एक तरफ से छीली और दूसरी तरफ से कब चबा दी गई।